
यह तमाचा है उन सभी प्रशासनिक अधिकारियों पर जो सत्ता के तलवे चाटने में इतने मस्त हैं कि उन्हें इस बात की परवाह ही नहीं कि वो शासकीय सेवक भी हैं।
कलेक्टर का ये कौन सा अहंकार है कि नेता प्रतिपक्ष और विपक्षी दल के प्रमुख नेताओं के सामने आकर ज्ञापन नहीं ले सकते ? ये कलेक्टर हैं या किसी देश का राजा ?
कुत्ते को ज्ञापन देकर कांग्रेस ने कलेक्टर को याद दिलाया है कि यदि सत्ता के चरण चुंबन में लोकतंत्र को निगलोगे तो जनता की नज़रों में तुम्हारी क्या छवि बनेगी।
*मध्यप्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों को बेशर्मी छोड़कर अपने पद और गरिमा को बचाते हुए काम करना चाहिए। सत्ता के दलाल बनने की बजाय जनता के सेवक बनने की कोशिश करना चाहिए।*
कलेक्टर को याद रखना चाहिए कि वो एक सरकारी नौकरी कर रहे हैं जिसकी कुछ मर्यादा और कुछ दायितव भी हैं। केवल मलाईदार पोस्टिंग की चाहत में सत्ताधारी दल का कार्यकर्ता बनना प्रशासनिक अधिकारी के लिए कतई उचित नहीं है।
*बहरहाल “कुत्ते” को ज्ञापन सौंपना मध्यप्रदेश के दलाल अफसरों के गाल पर लोकतंत्र का करारा तमाचा है।*